
रायगढ- बनोरा (अखंड भारत हमारे न्यूज़ की पहचान) अघोर गुरु पीठ ट्रस्ट बनोरा में तीन दशक से मानव सेवा की अखंड ज्योत जल रही है।अघोर गुरु पीठ ट्रस्ट की स्थापना पूज्य बाबा प्रियदर्शी राम जी द्वारा 31 जुलाई 1993 को बनोरा में मुख्यालय के साथ की गई थी।
हर साल इस दिन को आश्रम में स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है। पूज्य अघोरेश्वर भगवान राम के अनन्य प्रिय शिष्य बाबा प्रियदर्शी राम के कर कमलों के जरिए पूर्वांचल के ग्राम बनोरा में चौदह सूत्रीय उद्देश्यों को लेकर मानव सेवा का जो बीज रोपा गया वह तीन दशकों में वट वृक्ष बन गया बल्कि इस विशाल वट वृक्ष की शाखाएं छत्तीसगढ़ के शिवरीनारायण, डभरा, चिरमिरी, अंबिकापुर सहित अन्य प्रांत उत्तरप्रदेश के रेणुकोट, बिहार के मुर जिले के जिगना, झारखण्ड के आदर एवं रांची तक विस्तारित हो चुकी है। आश्रम की सभी शाखाओ में पीड़ित मानव सेवा का कार्य अनवरत जारी है। अघोर गुरु पीठ बनोरा अपनी स्थापना के मूलभूत उद्देश्यों को सार्थक कर रहा है। अघोर गुरु पीठ बनोरा छत्तीसगढ़ प्रदेश वासियों के लिए अनमोल धरोहर बन गया है ।अंचल के लिए सबसे बड़ी आध्यात्मिक पाठशाला में अघोर गुरु पीठ बनोरा मानव की सेवा के साथ साथ आम जनमानस के जीवन से अज्ञानता के अंधकार को दूर करने एवम मनुष्य को मोक्ष की राह बताने का कार्य भी बखूबी से कर रहा है।जन्म से मृत्यु तक के जीवन सफर में मनुष्य धन संपत्ति ख्याति अर्जित करने के लिए दिन रात जुटा रहता है। मौजूदा शिक्षा व्यवस्था मनुष्य को डॉक्टर इंजीनियर व्यवसाई वकील शिक्षक तो आसानी से बना रही है। मौजूदा शिक्षा और व्यवस्था में बेहतर इंसान बनाने की प्रक्रिया शामिल नहीं है। शिक्षा के व्यवसायीकरण की वजह से समाज में चारो तरफ व्यवसायिक मानसिकता हावी हो गई है । अघोर गुरु पीठ बनोरा मानव मात्र के अंदर मौजूद अदभुत गुणों को निखारने व उनका समाज हित मे उपयोग में लाने की दिशा में सतत प्रयत्न शील है । अघोर गुरु पीठ बनोरा एक ऐसी आध्यात्मिक पाठशाला है जिसमे सभी धर्म जाति उम्र के लोग शामिल होते है । यह पाठशाला मानव को जन्म का रहस्य बताते हुए जीवन में कार्य करने की शैली और इस दौरान मुक्ति का सही मार्ग बताती हैं। छत्तीसगढ़ में अघोर पंथ का बीजारोपण करने वाले वाले महान संत पूज्य अघोरेश्वर के शिष्य बाबा प्रियदर्शी राम जी ने अघोर पंथ की पावन परंपरा का विस्तार किया। बाबा प्रियदर्शी राम जी का पावन स्पर्श पाकर बनोरा की पावन भूमि अध्यात्मिक विचारों का केंद्र बन गई । बनोरा आश्रम की अध्यात्मिक शिक्षा ने मानव समाज को यह बताया कि समस्याओ का समाधान सृष्टि में बाहर नही है अपितु सभी समाधान मानव के मन मस्तिष्क में मौजूद है ।चित्त को स्थिर रखे बिना मनुष्य किसी भी समस्या का समाधान नही कर सकता।मानव जीवन के लिए आस्था और विश्वास के महत्व को परिभाषित करने में यह संस्था सफल रही है l मानव मन को गढ़ने की ठोस कार्य योजना इस आश्रम के अहम उद्दश्यों में शामिल है । आज एक बड़ा तबका अघोरपंथ के नैतिक मूल्यों को अपनाते हुये राष्ट्र निर्माण में अपनी सक्रिय सहभागिता दर्ज करा रहा है। वनांचल में स्थापित इस आश्रम ने यह साबित किया । किस तरह एक आदमी भी राष्ट्र निर्माण मददगार भूमिका निभा सकता है । मोह माया के दलदल में फ़सी हुई मानव जाति वैचारिक रूप से कमजोर हो रही है । मनुष्य के नैतिक पतन का असर समाज पर पड़ेगा । त्रिकालदर्शी अघोरेश्वर महाप्रभु ने समय रहते इस बात को महसूस किया कि चरित्रवान मनुष्य के बिना सबल राष्ट्र की कल्पना असंभव है। मनुष्य को मजबूत करने के लिये ऐसी पाठशाला की जरूरत थी जहां चरित्र निर्माण आसानी से हो सके। सही मायने में बनोरा आश्रम मानव जाति के लिये ऐसे चरित्र की पाठशाला है जहां से मनुष्य स्वयं को सहजता से बदल सकता है। महाप्रभु अघोरेश्वर की मंशा अनुरूप बनोरा की मौजूदा व्यवस्थायें स्वत: ही राष्ट्र निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर रही हैं।
श्मशान से समाज की ओर
गरीब व अमीर के मध्य वैमनस्यता की खाई बढ़ रही है। विवश लोगों के आंसू पोछने के साधन इस विकसित अर्थव्यवस्था में कम ही है।आधुनिक मनोवृत्तियों से घिरा मानव बुराईयों की चक्रव्यूह में फंस गया है। संस्कारों की कमी से सामाजिक चेतना शून्य हो चली है। बढ़ती नशाखोरी समाज की जड़ो को खोखला कर रही है। व्यवसायिक शिक्षा परेशानियों का मुख्य कारण है। ऐसी विषम परिस्थितियों में आश्रम से परम पूज्य प्रियदर्शी राम के निरंतर आर्शीवाचन समाज को दिशा दिखाने में पथ-प्रदर्शक साबित हो रहे है। जिन उद्देश्यों को लेकर इस ट्रस्ट की स्थापना की गई इस ट्रस्ट ने आशातीत सफलता पाई है l

राष्ट्रहित को सर्वोपरि समझते हुए मानव मात्र को भाई समझना, नारी के लिए मातृभाव रखना,बालक-बालिकाओं के बहुमुखी विकास के लिए शिक्षोन्मुखी वातावरण निर्मित करना, असहाय व उपेक्षित लोगों की सेवा तथा उनके लिए समाज में मर्यादित भाव जागृत करना, अंधविश्वास, नशाखोरी, तिलक-दहेज, के उन्मूलन हेतु सफल प्रयास करना, मानव धर्म की मूल भावनाओं के विचार विनिमय के लिए मंच प्रदान करना इस संस्था के मूल उद्देश्य है। जिन्हें पूरा करने हेतु विभिन्न गतिविधियां निरंतर संचालित है। अज्ञानता के अंधकार को दूर करने के लिए ट्रस्ट के प्रयास सराहनीय रहे है। साधन विहीन एवम समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े बेबस बेसहारा लोगों को जीवन की मूलभूत आवश्यकता शिक्षा चिकित्सा उपलब्ध कराना संस्था के मूल उद्देश्यों में शामिल है। दोनो ही क्षेत्र में संस्था ने अविस्मरणीय योगदान देते हुए सेवा के नए कीर्तिमान स्थापित किए है। सदैव हरियाली से आच्छादित रहने वाले इस अघोर गुरूपीठ का निर्माण घासीदास अमृतलाल एवं नंदलाल के द्वारा दान स्वरूप दी गई साढ़े तीन एकड़ जमीन में किया गया है। आश्रम के मुख्य द्वार के उपर निर्मित आकर्षक हंस के जोड़े मनुष्य को सदा नीर-क्षीर विवेकी होनें का संदेश देते है। प्रवेश द्वार के अंदर प्रवेश करते ही एक ज्ञान केन्द्र है, जहां अघोरेश्वर के जीवन से जुड़े ग्रंथ ,लाकेट,फोटो एवं साहित्यों का अनुपम संग्रह है। आश्रम के विशाल कुंए के समीप औघड़ संत राम सागर राम जी का सुंदर समाधि स्थल निर्मित है। समाधि पर एक सुंदर अरघा एवं शिवलिंग की स्थापना की गई है। जहां भक्तगण पूजा अर्चना करते है। परम पूज्य प्रियदर्शी बाबा का नवनिर्मित गुरुनिवास कक्ष आगंतुकों को आकर्षित किए बिना नहीं रहता। इस गुरुनिवास कक्ष में ही शिष्यो को अपने गुरू दर्शन का लाभ मिलता है। श्रद्धालुओं, भक्तों की व्यथा बड़े ही मनोयोग से सुनी जाती है और उनके निराकरण कर हर संभव आध्यात्मिक उपाय बताया जाता है। इस निवास के अग्र भाग में हरी घास से अच्छादित दो सुंदर क्यारियां एवं हरे घास का मैदान है जिनमें हमेशा रंग-बिरंगे फूलों की छटा सदैव बिखरी होती है। आश्रम का चप्पा-चप्पा हरियाली से आच्छादित है। शहरों में जिस हरियाली को देखने आंखे तरसती है जबकि इस आश्रम में जिधर नजर जाती है उधर हरियाली मन को प्रसन्न किए बिना नही रहती। मुख्य द्वार से आगे बढऩे पर संगमरमर से निर्मित विशाल उपासना स्थल है। जहां श्री यंत्र,परम पूज्य अघोरेश्वर भगवान राम की विशाल प्रतिमा चरण-पादुका एवं अस्थि कलश स्थापित है। सर्व प्रथम आगंतुक उपासना स्थल में भगवान अघोरेश्वर राम के दर्शन कर मन में शांति का अनुभव करते है। अघोर भभूत माथे पर लगाने की परंपरा भी है। प्रतिदिन प्रात: प्रियदर्शी राम जी पूजा संपन्न करते है,संध्या बेला में आरती तथा भजन-कीर्तन यहां की दिनचर्या में शामिल है जिसमे सभी शामिल हो सकते है । अशांति से घिरे मनुष्य को आश्रम की चार दिवारी में कदम रखते ही दिव्य शांति अनुभुति का एहसास होता है। चार कक्षों का पक्का भवन उपासना स्थल में लगा हुआ उत्तर में स्थित है। नवनिर्मित कक्षों में अतिथियों के ठहरने की व्यवस्था भी है। इस भवन से ही लगा हुआ एक अतिथि गृह भी सारी सुविधाओं से पूर्ण है। इसके अतिरिक्त आश्रम परिसर में दक्षिण भाग में तीन कक्षों वाला भवन महिलाओं के शरण हेतु निर्मित है। उपासना स्थल में दक्षिण में वृहद सुसज्जित व भव्य पंडाल निर्मित है। इसके पश्चिम दिशा में सुंदर मंच निर्मित है। जिसके उपर वर दहस्त मुद्रा में पूज्य अघोरेश्वर का विशाल चित्र लगा हुआ है। आश्रम के इस पंडाल में भक्तगण आर्शीवाचन एवं प्रसाद ग्रहण करते है। पर्व, त्यौहार में यह सभागार के उपयोग में आता है। आश्रम के पीछे उत्तरी-पश्चिम कोण में तीन कक्षा एवं दो बरामदों वाला भवन है जहां आश्रम के स्थाई कार्यकर्ता के अलावा पर्व त्यौहार के दौरान अतिथिगण भी रहते है। चैत्र नवरात्र पूज्य अघोरेश्वर का अवतरण दिवस भद्र पक्ष,शुक्ल पक्ष,सप्तमी तिथि, 29 नवंबर को पूज्य अघोरेश्वर का निर्वाण दिवस सहित वर्ष में 4 आयोजन ऐसे होते है। जिनमें भिन्न-भिन्न प्रांतों से भक्तजन आकर आयोजन में सम्मिलित होते है। इस अवसर पर भजन-कीर्तन एवं पूजा पाठ करते है
अमेरिका के सोनामा में भी आश्रम
अघोर गुरूपीठ बनोरा से बहने वाली आस्था श्रद्धा विश्वास की जलधारा समाज को आध्यात्मिक तृप्ति प्रदान कर रही है पूज्य अघोरेश्वर का एक आश्रम अमेरिका के सोनामा में निर्मित है वहां से विदेशी श्रद्धालुओं का भी निरंतर आना-जाना लगा रहता है। आश्रम दर्शन के निर्धारित समय से अन्य संप्रदाय से साधु संत एवं विशिष्टजन भी पूज्य बाबा के दर्शन पाकर सत्संग का लाभ उठाते है।
समाजिक बंधन विवाह हेतु दहेज वर्जित
आश्रम के सिद्धांतो के अनुरूप समाजिक बंधन विवाह हेतु दहेज वर्जित है। खर्चीली शादी में रोक लगाने बिना दहेज शादियों के लिये आश्रम सतत प्रयत्नशील है। इस क्रम में अब तक बिना दहेज के 73 विवाह संपन्न हुए है। इन शादियों में वर वधु पक्ष से सदस्यों की संख्या निश्चित होती है।अघोर गुरु पीठ ट्रस्ट बनोरा में 49 अघोर आश्रम काली मंदिर शिवरीनारायण में 5 अघोर आश्रम कोइलीजोर में 1 औघड़ की मड़ई जिगना में 8 कुटीर खाड़ पाथर आश्रम रेनुकोट में 10 जोड़ो का सादगी से विवाह संपन्न कराया गया। एक विधवा विवाह भी संपन्न कराया गया है। नशा उन्मूलन हेतु मादक द्रव्यों के सेवन को रोकने के लिये प्रचार-प्रसार के आलावा नशा निरोध हेतु दवाई भी वितरीत की जाती है। महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में पूज्य बाबा जी द्वारा क्रियाकुटी रेनुकोट आश्रम(उप्र) में वर्ष 2012 से महिला शिल्प कला प्रशिक्षण केन्द्र प्रारंभ किया गया है। इस केन्द्र से अब तक 200 महिलाओं को प्रशिक्षित कर स्वरोजगार के योग्य बनाया गया।
निर्धन परिवारों के दुख का निराकरण
दिव्यांग जनों के जीवन के दुख के निराकरण हेतु पूज्य अघोरेश्वर ने 6 दिवसीय कृत्रिम अंग निर्माण एवं वितरण शिविर का आयोजन किया। वर्ष 2015 से प्रारम्भ इस शिविर के जरिए कुल 881 दिव्यांग जनों को 976 कृत्रिम अंग निःशुल्क वितरित किये गए l इस हेतु जयपुर से विशेषज्ञों की टीम मौजूद रहती है l जीवन के लिये स्वच्छता अनिवार्य है लेकिन गरीबी स्वच्छता के लिये बड़ी बाधक भी है। इस मर्म को आश्रम प्रबंधन ने समझते हुए ग्राम बनोरा में निवासरत 73 निर्धन परिवारों को चिन्हित किया और उन्हे आश्रम की ओर से शौचालय निर्मित कर नि:शुल्क उपयोग हेतु सौंपा गया। अघोर गुरुपीठ ट्रस्ट-बनोरा द्वारा संचालित आश्रमों में निरंतर आवश्यक उपयोग की वस्तुओं का वितरण किया जाता रहा है। ठण्ड के ठिठुरते मौसम में कुल 3265 जरूरतमंद लोगों को रोजमर्रा की चीजें उपलब्ध कराई गयी जैसे कम्बल, साडी, धोती, नहाने का साबुन, धोने के साबुन, कपड़े इत्यादि जो कि अघोर गुरुपीठ ट्रस्ट-बनोरा में 484 पुरुष व 878 महिलायें एवं 12 अन्य, अघोर सेवा आश्रम-कोइलिजोर में 49 पुरुष व 277 महिलायें, क्रिया कुटी खाड़पाथर आश्रम-रेणुकूट में 52 पुरुष व 300 महिलायें, औघड़ की मड़ई-जिगना में 13 पुरुष, अवधूत कुटी-जौनपुर में 63 पुरुष व 282 महिलायें एवं 11 अन्य एवं आत्म अनुसंधान केंद्र-आदर में 844 लोग है। इसी क्रम में बाढ़ पीड़ितों के सहायतार्थ लाभान्वित लोगों की संख्या कुल 1826 है ।
नैतिक जिम्मेदारी का निर्वहन
स्वच्छ जीवन शैली अपनाने हेतु निरंतर ग्रामों में जागरूकता अभियान चलाये जाते हैं, इसके तहत कुल 73 शौचालय का निर्माण किया जा चूका है। कोविड महामारी के दौरान भी अघोर गुरु पीठ ट्रस्ट, बनोरा द्वारा अपनी नैतिक जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए पीड़ित जनों के सहायतार्थ 23 अप्रैल 2020 को प्रधान मंत्री सुरक्षा निधि में एक लाख ग्यारह हजार रुपए 20 सितम्बर 2020 को छत्तीसगढ़ सोसाइटी ऑर्गेनाइजेशन में जिला प्रशासन के जरिए एक लाख इक्कीस हजार रूपए का योगदान दिया गया।06 मई 2021 को ट्रस्ट द्वारा छत्तीसगढ़ सोसाइटी ऑर्गेनाइजेशन में माननीय जिलाध्यक्ष महोदय को दो लाख पांच हजार रुपए का योगदान पुनः दिया गया था साथ ही 02 जून 2021 को शासकीय अस्पताल, रायगढ़ में एक लाख उनतीस हजार आठ सौ की लागत से 20 नग एयर-कूलर भेंट स्वरुप दिए गए।
धान की खेती का अभिनव प्रयोग, गौ-शाला भी
आश्रम की परिधि से बाहर दक्षिण-पूर्व में कृषि के लिए सात एकड़ भूमि क्रय की गई इससे आधुनिक तरीके से धान की खेती का अभिनव प्रयोग किया गया है। चुंकि गावों में रोजगार के अवसरों का अभाव होता है। इस वजह से कृषि ही प्रमुख आय का साधन है। आधुनिक तरीके से खेती के प्रयोग के पीछे यह उद्देश्य है कि स्थानीय निवासी इस उन्नत पूर्ण तरीके को अपनाकर अधिक उत्पादन कर सके। यहां की भूमि खेती के योग्य है लेकिन सिंचाई के अभाव की वजह एक फसल प्राप्त होती है। सिंचाई के तकनीक को उन्नत करने का प्रयास किया जा रहा है। ताकि गेहू आदि की उपज प्राप्त की जा सके। प्रत्येक वर्ष प्रयोग के तौर पर धान की अच्छी किस्मे भी बीज स्वरूप डाली जाती है। गाय धर्म की अनुपम शोभा है। गौ-माता के प्रति विशेष श्रद्धा की वजह से आश्रम परिसर में गौ-शाला का निर्माण भी किया गया है जिसमें गायें एवं बछड़े है इनके गोबर से कंपोस्ट खाद बनाकर कृषि एवं बागवानी के उपयोग में लाया जाता हैउत्पादन के समय सिंचाई पर भी ध्यान केन्द्रित किया जाता है। खेती के कार्यो में बनोरा के ग्रामीण भी अपना श्रमदान देते है। आवश्यकता पडऩे पर मजदूर भी लगाए जाते है।