नई दिल्ली (एजेंसी) (AKHANDBHARATHNKP.COM)। छठ पर्व लोकआस्था और सूर्य उपासना का सबसे बड़ा पर्व है। यह खास तौर पर बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल में मनाया जाने वाला प्रमुख पर्व है। चार दिन तक चलने वाला यह नहाय-खाय से शुरू होकर उगते सूर्य को अघ्र्य देने के साथ संपन्न होता है। इस दौरान व्रती 36 घंटे तक निर्जला उपवास रखकर सूर्यदेव और छठी मैया से परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।
छठ पर्व में छठी मैया की पूजा के साथ ही सूर्य देव की भी उपासना की जाती है। इस पर्व को सूर्य की आराधना का सबसे बड़ा उत्सव माना जाता है। इस दौरान महिलाएं 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं और चौथे दिन सूर्यदेव को अर्घ्य देकर व्रत का पारण करती हैं। यह पर्व शरीर, मन और आत्मा की शुद्धि के साथ सूर्य की दिव्य ऊर्जा को ग्रहण करने का माध्यम है। इस दौरान भक्त सूर्यास्त और सूर्योदय दोनों समय अघ्र्य दिया जाता है। चार दिवसीय छठ पूजा महापर्व के पहले दिन नहाय-खाय, दूसरे दिन उपवास, तीसरे दिन निर्जला उपवास और चौथे दिन पारण होता है। यह 36 घंटे का कठिन व्रत मन, शरीर और आत्मा को तपाकर शुद्ध करता है। लेकिन अगर किसी मजबूरी, बीमारी या कमजोरी की वजह से व्रत अधूरा रह जाए, तो इसे लेकर डरने होने की जरूरत नहीं है। क्योंकि आप छठी माई से क्षमा याचना करके दोबारा व्रत का संकल्प ले सकते हैं। इसके लिए धर्मशास्त्रों में कुछ नियम बताए गए हैं।
पहला दिन – नहाय-खाय
छठ पर्व के पहले दिन व्रती शुद्ध जल से स्नान कर पवित्रता के साथ व्रत की शुरुआत करते हैं। व्रती अरवा चावल, चना दाल, लौकी की सब्जी और आंवले की चटनी का सेवन करते हैं। इसे शुद्ध भोजन माना जाता है। नहाय-खाय व्रतियों की आत्मिक शुद्धि का पहला चरण होता है।
दूसरा दिन – खरना या लोहंडा
खरना का अर्थ होता है शुद्धता और आत्मसंयम। इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं और शाम को सूर्यास्त के बाद मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकडिय़ों से गुड़ की खीर और गेहूं की रोटी बनाते हैं। यह प्रसाद छठी मैया को अर्पित किया जाता है और फिर परिवार के साथ ग्रहण किया जाता है।
तीसरा दिन – संध्या अर्घ्य
इस दिन व्रती और श्रद्धालु शाम के समय अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देते हैं। नदी, तालाब या घाटों पर पूजा का भव्य दृश्य देखने योग्य होता है। व्रती पूजा के दौरान सूर्य देव से परिवार की सुख-समृद्धि और आरोग्यता की कामना करते हैं। पूजा के समय लोकगीतों और छठी मैया के भजनों की गूंज वातावरण को भक्तिमय बना देती है।
चौथा दिन – उषा अघ्र्य और पारण
अंतिम दिन सुबह उदयीमान सूर्य को अर्घ्य देकर व्रती अपने व्रत का समापन करते हैं। इसे पारण कहा जाता है। व्रतियों के अनुसार, यह अर्घ्य जीवन में नई ऊर्जा और सकारात्मकता का प्रतीक होता है। सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रती प्रसाद ग्रहण कर व्रत पूर्ण करती हैं।

