नई दिल्ली (एजेंसी)(AkhandBharatHNKP.Com)। पीएम मोदी ने रविवार 27 जुलाई को मन की बात की। उन्होंने मन की बात के 124वें एपिसोड में कई अहम मुद्दों पर चर्चा की। एपिसोड की शुरुआत में उन्होंने शुभांशु शुक्ला और स्पेस के बारे में बात की। उन्होंने कहा- जैसे ही एस्ट्रोनॉट शुभांशु शुक्ला धरती पर उतरे, लोग उछल पड़े। हर दिल में खुशी की लहर दौड़ गई। पूरा देश गर्व से भर गया। पीएम मोदी ने इसके अलावा भी कई अहम बातें देश के सामने रखीं।
पीएम ने आगे कहा- इससे साइंस-स्पेस को लेकर बच्चों में नई जिज्ञासा जागी है। अब छोटे-छोटे बच्चे कहते हैं कि हम भी स्पेस में जाएंगे। हम भी चांद पर उतरेंगे। स्पेस साइंटिस्ट बनेंगे। मुझे याद है जब अगस्त 2023 चंद्रयान की सफल लैंडिंग हुई थी। तब देश में एक नया माहौल बना था। उन्होंने आगे कहा कि 21वीं सदी के भारत में आज साइंस एक नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ रहा है। कुछ दिन पहले हमारे छात्रों ने इंटरनेशनल केमेस्ट्री ओलंपियाड में मेडल जीते हैं। देवेश पंकज, संदीप कुची, देबदत्त प्रियदर्शी और उज्ज्वल केसरी, इन चारों ने भारत का नाम रोशन किया। मैथ्स की दुनिया में भी भारत ने अपनी पहचान को और मजबूत किया है। इंटरनेशल मैथेमेटिक्स ओलंपियाड में हमारे छात्रों ने 3 गोल्ड, 2 सिल्वर और 1 ब्रॉन्ज मेडल हासिल किया है। भारत अब ओलंपिक और ओलंपियाड में आगे बढ़ रहा है।
स्वतंत्रता सेनानी खुदीराम बोस को याद किया
12 अगस्त 1908 में बिहार का मुजफ्फरपुर शहर में हर गली, हर चौराहा, हर हलचल उस समय जैसे थमी हुई थी। लोगों की आंखों में आंसू थे, लेकिन दिलों में ज्वाला थी। लोगों ने जेल को घेर रखा था, जहां एक 18 साल का युवक, अंग्रेजों के खिलाफ अपना देश-प्रेम व्यक्त करने की कीमत चुका रहा था। जेल के अंदर अंग्रेज अफसर एक युवा को फांसी देने की तैयारी कर रहे थे। उस युवा के चेहरे पर भय नहीं था, बल्कि गर्व से भरा हुआ था। वो गर्व, जो देश के लिए मर-मिटने वालों को होता है। वो वीर, वो साहसी युवा थे, खुदीराम बोस। सिर्फ 18 साल की उम्र में उन्होंने वो साहस दिखाया, जिसने पूरे देश को झकझोर दिया।
तेजी से बढ़ रहा है टेक्सटाइल उद्योग
अगस्त का महीना तो क्रांति का महीना है। एक अगस्त को लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की पुण्यतिथि होती है। 8 अगस्त को गांधी जी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई थी। फिर आता है 15 अगस्त, हमारा स्वतंत्रता दिवस, हम अपने स्वतंत्रता सेनानियों को याद करते हैं, उनसे प्रेरणा पाते हैं। 7 अगस्त, 1905 को एक और क्रांति की शुरुआत हुई थी। स्वदेशी आंदोलन ने स्थानीय उत्पादों और खासकर हैंडलूम को एक नई ऊर्जा दी थी। इसी स्मृति में देश हर साल 7 अगस्त को नेशनल हैंडलूम डे मनाता है। इस साल 7 अगस्त को नेशनल हैंडलूम डे के 10 साल पूरे हो रहे हैं। जब देश विकसित भारत बनने की ओर कदम बढ़ा रहा है तो टेक्सटाइल सेक्टर ने बहुत योगदान दिया है। इन 10 सालों में इस सेक्टर ने नई-नई गाथाएं लिखीं। टेक्सटाइल भारत का सिर्फ एक सेक्टर नहीं है। ये हमारी सांस्कृतिक विविधता की मिसाल है। आज टेक्सटाइल और कपड़ा मार्केट बहुत तेजी से बढ़ रहा है, और इस विकास की सबसे सुंदर बात यह है की गांवों की महिलाएं, शहरों के डिजाइनर, बुजुर्ग बुनकर और स्टार्ट-अप शुरू करने वाले हमारे युवा सब मिलकर इसे आगे बढ़ा रहे हैं। आज भारत में 3000 से ज्यादा टेक्सटाइल कंपनियां सक्रिय हैं। 2047 के विकसित भारत का रास्ता आत्मनिर्भरता से होकर गुजरता है। ये वोकल फॉर लोकल से ही पूरा होगा।
गुमला में हुई नई शुरुआत
झारखंड के गुमला जिले में एक समय था जब ये इलाका माओवादी हिंसा के लिए जाना जाता था। गांव विरान हो रहे थे, डर के साये में लोग जीते थे। जमीनें खाली पड़ी थीं और नौजवान पलायन कर रहे थे। बदलाव की शांत और धैर्य से शुरुआत हुआ। ओमप्रकाश साहू ने यहां हिंसा का रास्ता छोड़ा और मछलीपालन का काम शुरू किया। इस बदलाव का असर भी देखने को मिला। अब बंदूक पकडऩे वालों के हाथों में मछलियां पकडऩे वाले औजार हैं। सरकार के सहयोग से गुमला में मत्स्य क्रांति का आगाज हो गया है। गुमला की यह यात्रा हमें सिखाती है कि अगर रास्ता सही हो और मन में भरोसा हो तो कठिन परिस्थितियों में भी विकास का दीप जल सकता है।
यूनेस्को ने 12 किलों को दी वल्र्ड हेरिटेज साइट की मान्यता
यूनेस्को ने 12 किलों को वल्र्ड हेरिटेज साइट की मान्यता दी है। ये सभी किले ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़े हैं। देश के और हिस्सों में भी ऐसे ही अद्भुत किले हैं, जिन्होंने आक्रमण झेले, खराब मौसम की मार झेली, लेकिन आत्मसम्मान को कभी भी झुकने नहीं दिया। राजस्थान का चित्तौडग़ढ़ का किला, कुंभलगढ़ किला, रणथंभौर किला, आमेर किला, जैसलमेर का किला तो विश्व प्रसिद्ध है। कर्नाटका में गुलबर्गा का किला भी बहुत बड़ा है। चित्रदुर्ग के किले की विशालता भी आपको कौतूहल से भर देगी कि उस जमाने में ये किला बना कैसे होगा! उत्तर प्रदेश के बांदा में है, कालिंजर किला। महमूद गजनवी ने कई बार इस किले पर हमला किया और हर बार असफल रहा। बुन्देलखंड में ऐसे कई किले हैं, ग्वालियर, झांसी, दतिया, अजयगढ़, गढ़कुंडार, चंदेरी। ये किले सिर्फ ईंट-पत्थर नहीं हैं, बल्कि हमारी संस्कृति के प्रतीक हैं। मैं सभी देशवासियों से आग्रह करता हूं कि इन किलों की यात्रा करें, अपने इतिहास को जानें।